देश के कोने कोने से आएं हस्तशिल्पकार, हर एक स्टेट का विशेष व्यंजन, अपना घर, चौपाल, चारों तरफ हाथ से बनी वस्तुओं से सजावट, रंगारंग कार्यक्रम, लोक नृत्य, रंगीन छटा मौज मस्ती। जी हाँ हम बात कर रहे हैं “अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले” की। जिसका आयोजन हरियाणा के फरीदाबाद जिले में किया जाता है। इस मेले को सबसे बड़े “अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले” का दर्जा भी प्राप्त है।इस मेले का आयोजन केंद्रीय पर्यटन, कपड़ा, संस्कृति, विदेश मंत्रालयों और हरियाणा सरकार के सहयोग से ‘सूरजकुंड मेला प्राधिकरण’ में ‘हरियाणा पर्यटन’ संयुक्त रूप से करता है। 1 फरवरी से 15 फरवरी मेले के लिए निर्धारित तिथि है।
‘सूरजकुंड मेले’ की बात ही निराली है। फरीदाबाद में कई वर्ष बिताने के कारण मुझे इस मेले से विशेष लगाव हैं। प्रत्येक वर्ष जनवरी से ही मेले का इंतजार करते हैं। अपनी सखियों के साथ, कभी परिवार के साथ, मेले का आनंद उठाते हैं। अब तो कोरोनावायरस के कारण यह मेला नहीं लग पा रहा है।
यह मेला उन शिल्पकारों के लिए आयोजित होता है, जो ख़ुद अपने हाथ से सामान बनाते हैं। पूरे देश से आए हस्तशिल्पी और उनकी कला आपको यहां एक ही प्रांगण में देखने को मिल जाएगी। यहाँ आसाम का सिल्क, मध्य प्रदेश के चंदेरी, कश्मीर के शॉल, बांस के फर्नीचर, आगरा की मार्बल आर्ट पेंटिंग, मधुबनी आर्ट और भी ना जाने कितनी प्रसिद्ध कलाएं आपको यहां देखने को मिल जाएंगी। इन्हें देख कर मन झूम उठता हैं।
मेले में सारे स्टॉल मिट्टी, गारे, ईटों से बने होते हैं। जो कि यहाँ स्थाई रूप से बने रहते हैं। इनकी छत भी घास फूस की होती है। मिट्टी का लेप करके दीवारों को बनाया जाता है। उन पर हाथ से चित्र बनाते हैं, जो कि अलग-अलग स्टेट की कला को दर्शाते हैं। यहाँ कुछ भव्य गेट भी बने हुए हैं। किसी न किसी स्टेट की कला का अद्भुत नमूना है।
चौपाल : मेले के विशेष आकर्षणों में चौपाल सबसे लोकप्रिय हैं। चौपाल पर विभिन्न स्टेट से आएं कलाकार अपनी प्रतिभा से मंत्रमुग्ध कर देते हैं। अति सुंदर लोकनृत्य, गायकी कवि सम्मेलन, नृत्य नाटिका आदि आयोजित होते हैं। अलग-अलग देशों से आएं कलाकार जैसे कजाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, यूरोप अफ्रीका, जापान, कांगो आदि अपने-अपने लोक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। उनकी वेशभूषा भी उसी प्रकार से होती है जिस प्रकार से उनका लोक नृत्य।
एक बार मैंने चौपाल पर ‘राधा कृष्ण’ ‘नृत्य नाटिका’ को देखा। उन्होंने इतने पुष्पों की वर्षा की, मैं देख कर दंग रह गई। आज भी वह नृत्य नाटिका मुझे भूल नहीं पाती है।
अपना घर : मेले के बीचो बीच बना है ‘अपना घर’। जहाँ पर जो भी मेले की थीम स्टेट होती है, उसका रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा पूरी तरह से यहाँ प्रदर्शित होती हैं। जैसे, मैंने देखा था, पंजाब का ‘अपना घर’, तो वहाँ मंजी, फुलकारी, साग रोटी, गिद्दा भंगड़ा करते हुएं मुटियारे। ऐसा लग रहा था, मानो मैं पंजाब में ही घूम रही हूँ। इसी तरह से आपको अपने देश के सभी स्टेट के रहन सहन के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है।
नृत्यशाला : मेले में एक नृत्यशाला अलग से बनी हुई हैं। वहाँ, अलग-अलग देशों के और अलग-अलग स्टेट के लोक कलाकार नृत्य प्रस्तुत करते हैं। उनकी वेशभूषा उनके लोक नृत्य में चार चाँद लगा देती हैं। हम लोग पूरे देश का भ्रमण नहीं कर सकते और ना ही पूरे देश की संस्कृति को समझ सकते हैं। यह मेला हमें बहुत से स्टेट की कला को समझने, देखने और सराहने में मदद करता हैं।
फूड कोर्ट : मेले एक बहुत बड़ा फूडकोर्ट भी हैं। जहां पर आप अपने देश के पारंपरिक भोजन का लुत्फ उठा सकते हैं। दाल बाटी, चूरमा, सांगरी, दबेली, हरियाणा का जलेबा, छोले भटूरे, साग रोटी, डोसा, बाजरे की खिचड़ी, मूंग की दाल का हलवा, गोलगप्पे मुंबई भेल पुरी, कुल्फी, बुढ़िया के बाद। आप इन स्वादिष्ट व्यंजनों का जी भर कर लुत्फ उठा सकते हैं।
“सूरजकुंड क्राफ्ट मेले” का मकसद यही है कि देश के कोने-कोने से आएं हस्तशिल्पकार ख़ुद अपना सामान को बेचें सकें। हम लोग केरल या महाराष्ट्र, कश्मीर, नहीं जा सकते, या कहना चाहिए कि कुछ ही स्टेट घूम सकते हैं, परंतु उनकी कला, उनके परिधान, उनके हाथ से बने विशेष सामान का आनंद हम यहां उठा सकते हैं। अपनी पारंपरिक संस्कृति को जाने समझने और महसूस करने में यह मेला बहुत मदद करता है। तो दोस्तों मैं आपसे यही कहना चाहूंगी कि एक बार इस मेले में जरूर आइएं। अपनी कला, संस्कृति, वेशभूषा, लोक नृत्य, नाटिका का आनंद उठाइए।
वसुधा गोयल
लेखिका
पता : देहरादून, उत्तराखंड, भारत