प्रियंका गहलौत (प्रिया कुमार) – लेखिका/समीक्षक – मुरादाबाद
यह तो कई महान व्यक्तियों और दर्शनशास्त्रों में बताया गया है, कि जीवन में छोटी- छोटी बातों, चीजों में आनंद को महसूस किया जा सकता है। तब प्रश्न उठता है कि हर पल को हम कैसे आनंद से जी सकते हैं? इस पर पुनः बकौल ओशो “खुशी एक अद्भुत एहसास है जो सिर्फ़ खुशी से कहीं आगे तक फैला हुआ है। यह अंदर से एक गहरी, चमकती हुई खुशी की तरह है । यह हमारे आस-पास की चीज़ों की सराहना करने, आभारी महसूस करने और छोटे-छोटे पलों में खुशी खोजने से आता है।”
वर्तमान समय में हमारा समाज कहने दिखने के लिए तो विकसित लगता है किन्तु जब गहनता से देखा जाए तब समझ आने लगता है कि हर व्यक्ति अवसाद से ग्रसित है। जिसके चलते आनंद या ख़ुशी की कमी महसूस होती है।
हम वास्तव में दुःख की कमी को सुख समझ लेते हैं जो कि एक विभ्र्म होती है और जल्दी ही हम पुनः आनंद से वंचित हो जाते हैं। आइए हम वास्तविक आनंद को इस कहानी द्वारा समझने का प्रयास करें।
एक आदमी था, बहुत धन था उसके पास , लेकिन शांति न थी, जैसा कि अक्सर हाेता है। धन की तलाश करता है आदमी कि शांति मिले। धन ताे मिल जाता है, पर शांति जितनी दूर थी, शायद उससे भी ज़्यादा दूर हाे जाती है। सब पा लिया था, लेकिन आनंद की काेई खबर न मिली और वह बूढ़ा हाेने आ गया था, ताे उसने बहुत से लाखाें-कराेड़ाें के हीरे जवाहरात अपने घाेड़े पर ले लिए और खाेज में निकल पड़ा। खाेजने नहीं बल्कि कहना चाहिए आनंद काे खरीदने निकल पड़ा जाे आनंद दे दे, उसे ही सारे हीरे जवाहरात दे देना चाहता था। बहुत लाेगाें के पास गया, जहाँ-जहाँ खबर सुनी वहाँ-वहाँ गया लेकिन किसी काे आनंद की काेई खबर न थी। लाेगाें ने आनंद की बात ताे की, लेकिन उसने कहा, बात नहीं, मुझे आनंद चाहिए और मैं सब कुछ देने काे तैयार हूँ।
लेकिन हर जगह उसे लाेगाें ने सलाह दी कि तुम कुछ ऐसा काम करने निकले हाे कि सिर्फ एक फक़ीर है फलाँ-फलाँ गाँव में, अगर वह कर दे ताे कर दे, और काेई न कर पाए। फिर आखिर वह उस गाँव में भी पहुँच गया। साँझ का समय था, अमावस की रात थी, सूरज ढल गया था। गाँव के बाहर ही एक वृक्ष के नीचे वह फक़ीर मिल गया। उस अमीर आदमी ने घाेड़े से उतर कर थैली उस फक़ीर के पैराें के पास पटक दी और कहा, “कराेड़ाें रुपये के हीरे जवाहरात हैं। मुझे आनंद चाहिए, एक झलक मिल जाए, मैं सब देने काे राज़ी हूँ।”उस फक़ीर ने कहा, “पक्का इरादा करके आए हाे?”
उस आदमी ने कहा, “पक्का! एक महीने से घूम रहा हूँ और उदास हाे गया हूँ। तुम पर ही आशा टिकी है।
उस फक़ीर ने कहा,”सच में ही आनंद चाहिए और दुःखी हाे?” उस आदमी ने कहा, “दुःख का काेई हिसाब नहीं. आनंद की काेई किरण भी नहीं मिलती।”
यह बात ही चल रही थी कि अचानक उस अमीर ने देखा कि यह क्या हुआ? उस फक़ीर ने झाेली उठाई और भाग खड़ा हुआ। एक क्षण ताे अमीर सकते में आ गया। अमीर सिर्फ उन फक़ीराें का विश्वास करता है, जाे पैसे न छुएँ इसलिए अमीर उनकी पूजा करता है, जाे पैसे से बिल्कुल दूर रहें, क्याेंकि अमीर उनसे आश्वस्त रहता है कि इनसे काेई ख़तरा नहीं। यह फक़ीर कैसा है झाेले काे ही ले भाग गया! एक क्षण ताे उसकी समझ में भी न आया, फिर वह चिल्लाया कि “मैं लुट गया, मैं मर गया। मेरी सारी ज़िंदगी की कमाई लिए जा रहे हाे. तुम चाेर हाे, तुम कैसे ज्ञानी हाे?” और पीछे भागा, क्याेंकि अँधेरी रात थी और सन्नाटा था गाँव के बाहर लेकिन फक़ीर खुद ही गाँव में चला गया भागता हुआ और अमीर पीछे गया।
गली-गली में फकीर भागने लगा और अमीर पीछे चिल्लाने लगा कि पकड़ाे, चाेर है, बेईमान है और मैं समझा था कि ज्ञानी है। मैं लुट गया, मैं मर गया। मैं बहुत दुःखी हाे गया हूँ, मेरा सब छिन गया है। गाँव के लाेग भी सम्मिलित हाे लिए. गाँव के लाेग भी भागने लगे लेकिन फक़ीर के रास्ते जाने माने थे और अमीर रास्ते जानता न था, पराया गाँव था. इसलिए फक़ीर ने बहुत चक्कर लगाए। फिर आखिर फकीर उसी झाड़ के पास वापस लाैट आया। झाेले काे पटक दिया, जहाँ से उठाया था वहीं, और झाड़ के पीछे अँधेरे में खड़ा हाे गया। अमीर आया पीछे हाफँता हुआ, भागता हुआ, चिल्लाता हुआ, लुट गया, मर गया। हे भगवान, मेरा सब छिन गया। झाेले काे देखा, उठा लिया, छाती से लगा लिया।
`उस अमीर की आँखाें में उस समय आनंद की झलक थी. फक़ीर बाहर निकला और उसने कहा, “क्यों अब बड़ी शांति मिली, बड़ा आनंद मिला, इतना सुखी तो तू कभी भी न था।लेकिन यह थैली इसके पास पहले भी थी और यह कहता है, इतना सुखी मैं पहले कभी न था और अब कहता है, बड़ी शांति मिली. और यह थैली पूरी की पूरी इसके पास थी, घड़ी भर पहले भी.इस घड़ी भर में क्या हाे गया? इस घड़ी भर में इसने खाेया। जब तक हम खाे न दें उसे, जाे हमारे पास है, हम उसे पा नहीं सकते। जब तक हम खाे न दें उसे, जाे हमारे भीतर है तब तक हम उसे पहचान नहीं सकते. शायद इसीलिए मनुष्य काे खाेना पड़ता है स्वयं काे, ताकि वह पा सके।
उपर्युक्त कहानी का सार है कि जो आपके पास है उसी में आनंद है ना कि दुनिया भर में ढूँढने पर मिलेगा। अतः हर छोटी-छोटी चीज़ को ख़ुशी से स्वीकार करें और आनंद से जियें। दरअसल आपको सब कुछ सिखाया जा रहा है, लेकिन आपको स्वयं बने रहना नहीं सिखाया जा रहा है। यह समाज का सबसे कुरूप रूप है, क्योंकि यह हर किसी को दुःखी बनाता है। “आनंद का अर्थ है कि आप अपने अस्तित्व के सबसे अंतरतम केंद्र तक पहुँच गए हैं। यह आपके अस्तित्व की उस परम गहराई से संबंधित है जहाँ अहंकार भी नहीं रहता, जहाँ केवल मौन व्याप्त रहता है।
“आनंद आध्यात्मिक है । यह अलग है, सुख या खुशी से बिलकुल अलग है।” -ओशो