साक्षात्कार : जीवन के सरल आयामों को अपनाने वाली कवयित्री – मीना सिंह

आज हम दिल्ली की एक उभरती हुई लेखिका के साथ विशेष बातचीत करने जा रहे हैं। दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी इस लेखिका ने अपने जीवन को सरलता और सहजता से अपनाते हुए एक नया मुकाम हासिल किया है। आइए, जानते हैं उनकी प्रेरणादायक यात्रा के बारे में।

मीनू बाला: अपने प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के बारे में कुछ बताइए।

मीना सिंह: मेरा जन्म और पालन-पोषण दिल्ली शहर में हुआ। मैंने सी.बी.एस.ई. से शिक्षा प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के एस.ओ.एल. से स्नातक (बी.कॉम.) की डिग्री हासिल की। विद्यार्थी जीवन में मैं एक मेधावी छात्रा रही हूँ। मेरे माता-पिता ने मुझे जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों और चुनौतियों को स्वीकारने की प्रेरणा दी।

मीनू बाला: साहित्य के प्रति आपका रुझान कैसे उत्पन्न हुआ?

मीना सिंह: साहित्य के प्रति मेरा रुझान बचपन से ही रहा है। किताबें पढ़ना मुझे हमेशा से बहुत पसंद है। बचपन में मैंने किताबों के माध्यम से विभिन्न विचारों और भावनाओं को जाना और समझा। कक्षा आठ से मैंने डायरी लिखना शुरू किया और धीरे-धीरे कविताएँ भी लिखने लगी। लेखन मेरे लिए सुकून का माध्यम रहा है और आज भी वही मेरे जीवन का हिस्सा है।

मीनू बाला: साहित्य के क्षेत्र में आपने कौन-कौन से प्रयास किए हैं?

मीना सिंह: मैंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ‘चेतना मंच’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, लेखकों को पुस्तक प्रकाशन में मार्गदर्शन देने के लिए ‘फ्लोरेंट पब्लिकेशन’ की नींव रखी गई। इन दोनों ही प्रयासों का उद्देश्य साहित्य के क्षेत्र में योगदान देना है।

मीनू बाला: अपने लेखन के सफर और चुनौतियों के बारे में बताइए।

मीना सिंह: मैं स्वयं को सफल कवयित्री नहीं मानती, लेकिन मेरा मानना है कि चुनौतियाँ कभी बड़ी नहीं होतीं, बल्कि हमारा नजरिया उन्हें बड़ा बना देता है। मैंने जीवन में आने वाली चुनौतियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकारा है और उन्हीं से प्रेरित होकर लेखन किया है।

मीनू बाला: लेखन के क्षेत्र में आपके अनुभव और प्रेरणाएँ क्या हैं?

मीना सिंह: मेरे लेखन में मेरे व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों का बहुत योगदान रहा है। हाल ही में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘मन के घाव’ में मेरी एक कविता भी शामिल है, जिसका शीर्षक है:

चलो समेट लो खुद को यूँ बिखरने मत देना,

तुम बहुत कीमती हो खुद को गिरने मत देना।

घाव मन के मिलें कभी तो घबराना नहीं तुम,

उन्हें गले से लगाना पर खुद को मरने मत देना।

यह कविता मेरे अनुभवों और विचारों का निचोड़ है।

मीनू बाला: नए लेखकों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?

मीना सिंह: मैं नए और साथी कलमकारों से बस इतना ही कहना चाहूँगी कि लेखन आपके लिए सुकून होना चाहिए, जीतने का ज़रिया नहीं। अगर आप सुकून में हैं तो जीत, खुशहाली, तरक्की और हर उपलब्धि आप तक पहुँचेगी। अपने कर्मों के प्रति सजग रहें और लेखन को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर इसे जीएँ। इस प्रेरणादायक बातचीत से स्पष्ट है कि लेखन केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि अनुभवों और विचारों का संगम है। हमारी लेखिका ने अपने जीवन के अनुभवों से सीखा और उन्हें शब्दों के माध्यम से साझा किया। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि सही दिशा में निरंतर प्रयास से हम अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।

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