साक्षात्कार: भारतीय स्टेट बैंक की वरिष्ठ सहयोगी – कवयित्री रोमिल फ्लॉस

सचिन चतुर्वेदी: नमस्ते! सबसे पहले, आपका धन्यवाद कि आपने हमारे साथ बातचीत के लिए समय निकाला। क्या आप प्रारंभिक जीवन के बारे में हमारे पाठकों को कुछ बताएं?

रोमिल: नमस्ते! मेरे पिताजी बैंक में कार्यरत थे, जिसके कारण हमें अनेक शहरों में घूमने का अवसर मिला। मेरा जन्म जालंधर, पंजाब में हुआ, लेकिन कुछ ही हफ्तों बाद हम दिल्ली आ गए। कुछ साल फरीदाबाद में बीते और फिर अधिकांश समय दिल्ली में। बचपन में मां-पिताजी का स्नेहिल प्यार, दादी-दादा का लाड़ और बड़ी बहन एवं छोटे भाई के साथ बेहतरीन समय गुजरा।

सचिन चतुर्वेदी: बहुत सुंदर! क्या आप अपने स्कूल और कॉलेज के बारे में कुछ बताना चाहेंगी?

रोमिल: स्कूल की शिक्षा मुख्यतः दिल्ली में हुई और कॉलेज भी दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से किया। मैंने वहां से बी.ए. अंग्रेज़ी (ऑनर्स) में स्नातक किया, लेकिन लिखने का रुझान हमेशा से ही मातृभाषा के प्रति रहा।

सचिन चतुर्वेदी: किसने आपको कविता लिखने के लिए प्रारंभिक प्रेरणा दी और आपकी लेखन यात्रा कैसे शुरू हुई?

रोमिल: बचपन से ही छोटी-मोटी तुकबंदी करती रहती थी। भाई-बहन के साथ तुकबंदी और जुगलबंदी का सिलसिला चलता रहता था। दसवीं के बाद मैंने सही रूप में लिखना शुरू किया। स्कूल और कॉलेज की मैगजीन में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में कविताएं प्रकाशित हुईं और कई सम्मेलनों में हिस्सा लेकर प्रोत्साहन मिला।

सचिन चतुर्वेदी: व्यवसायिक जीवन में लेखन का कैसे स्थान पाया?

रोमिल: भारतीय स्टेट बैंक में वरिष्ठ सहयोगी के रूप में कार्यरत हूं। जब मेरे साथियों को लेखन का पता चला, तो उन्होंने एसबीआई मैगजीन में कविताएं प्रकाशित करने को कहा। राष्ट्रभाषा विभाग में भी रचनाएं भेजी, जिन्हें सराहा गया और प्रकाशित किया गया। बैंक की काव्य गोष्ठियों में हिस्सा लेने का अवसर भी मिला।

सचिन चतुर्वेदी: लेखन में आपकी प्रेरणा क्या है?

रोमिल: लेखन मेरे लिए आत्मा के समान है। इससे मुझे सुकून मिलता है। चाहे खुशी हो या दुख, पुरानी यादें हों या नए एहसास, सबको लेखन में उतारने का प्रयास करती हूं। पहले व्यस्तताओं के कारण लिखने का समय नहीं मिल पाता था, लेकिन अब समय मिलने पर कलम उठा लेती हूं। मेरी बिटिया और दीदी ने हमेशा प्रेरित किया है।

सचिन चतुर्वेदी: आपके लेखन के विषय कौन-कौन से होते हैं?

रोमिल: मैंने प्रेम, विरह, बचपन, चाय, नारीवाद, दोस्ती आदि विषयों पर लिखा है। मेरी एक कविता मुझे बहुत प्रिय है, जिसके कुछ अंश ऐसे हैं:

“तू बोल, और अगर न बोल सके तो लिख

पर जैसा है तू अंदर से, वैसा बाहर से भी दिख।

कह लेगा तो दिल को एक तसल्ली हो

मन का बोझ, न बोल सके तो लिख।

है अंदर तूफान उफनते, लावा बनकर बह जाने दे

जिन शब्दों को कह न पाए, उन शब्दों को लिख।

न दोस्त कोई, न साथी है, न हमराज़ कोई तेरा

डरता है कहने से राज़, न कह पाए तो लिख।

कलम को अपना दोस्त बना, और कागज़ को हमराज़

फाड़ दे चाहे लिख कर तू, पर एक बार तो लिख।”

सचिन चतुर्वेदी: आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?

रोमिल: कई मंचों पर कविताएं साझा की हैं और लोगों की सराहना मिली है। सबसे बड़ी उपलब्धि तब महसूस हुई जब एक प्रतियोगिता में विजयी बनकर मेरे प्रिय कवि डॉ. कुमार विश्वास से मिलने का मौका मिला और उनके सामने कविता सुनाने का हर्ष मिला। हजारों श्रोताओं के सामने प्रदर्शन और कार्यक्रम के बाद भी लोगों की सराहना अविस्मरणीय थी।

सचिन चतुर्वेदी: नवोदित कवियों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

रोमिल: नवोदित कवियों को मैं यही सलाह दूंगी कि लिखते रहें और खूब पढ़ें। दूसरों को सुनें और प्रोत्साहित करें। किसी भी मंच पर केवल अपना सुनाने के लिए न जाएं, बल्कि दूसरों को भी सुनें। और जो केवल इसमें अपना भविष्य या आमदनी देखते हैं, वे आशा न छोड़ें, वक्त अपने वक्त पर ही आता है।

सचिन चतुर्वेदी: बहुत-बहुत धन्यवाद! आपके अनुभव और सुझाव बहुत प्रेरणादायक हैं। हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

रोमिल: धन्यवाद! आपके साथ इस बातचीत का अनुभव बहुत ही सुखद रहा।

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