कुरुक्षेत्र – धर्म का क्षेत्र : मणिमाला चटर्जी

1 नवंबर,  1966 में स्थापित हरियाणा राज्य का प्राचीन नाम था ब्रह्मेपदेश,  आर्यवर्त या ब्रह्मवर्त। भारत के उत्तर में स्थित इस राज्य के उत्तर सीमा में हिमाचल प्रदेश,  तथा दक्षिण- पश्चिम में है राजस्थान। हरियाणा राज्य के अन्तर्गत कुरुक्षेत्र एक प्राचीन और पवित्र क्षेत्र माना जाता है जहाँ ‘महाभारत’ का धर्मयुद्ध संघटित हुआ था तथा कृष्ण द्वारा अर्जुन को ‘भागवत् गीता’ की शिक्षा दी गई थी,  तथा मनु ऋषि द्वारा ‘मनुस्मृति’ की रचना की गई थी।

प्राचीन पुराण के अनुसार कौरव एवं पाण्डवों के पूर्वज राजा कुरु के नामानुसार इस क्षेत्र का नाम कुरुक्षेत्र हुआ। ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ के अनुसार कुरुक्षेत्र की स्थिति तुर्घना (सिरहिंद,  पंजाब) के दक्षिण में,  खाण्डव क्षेत्र के उत्तर में,  मरुस्थल के पूर्व तथा पारित के पश्चिम में है। ‘वामन पुराण’ के अनुसार राजा कुरु ने सरस्वती नदी के किनारे एक क्षेत्र का चयन किया था,  आध्यात्मिकता के आठ गुण : तापस,  सत्य,  क्षमा,  दया,  शुद्धि,  दान,  यज्ञ तथा ब्रह्मचर्य की आधारशिला की स्थापना के लिए।

सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के बीच स्थित यह भूमि एक पवित्र तीर्थ है क्योंकि भगवान विष्णु ने राजा कुरु के आदर्श से प्रभावित होकर दो वरदान दिया था। पहले वरदान के अनुसार,  राजा के नामांकित यह क्षेत्र एक पवित्र क्षेत्र बना रहेगा तथा इस क्षेत्र में मृत्यु होने से स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

इतिहास – कुरुक्षेत्र अपनी उत्कर्षता की चरम सीमा पर था राजा हर्ष के शासनकाल में जब चैनिक विद्वान जुयानझांग

राजधानी थानेश्वर आए थे। ख्रीष्टपूर्व 4 वीं शताब्दी के अंतिम भाग में मौर्य अधिग्रहण के समय यहाँ वौद्ध तथा हिन्दू धर्म का समागम हुआ। मौर्य साम्राज्य का पतन तथा कुषाण साम्राज्य के उद्भव के बीच के समयकाल का इतिहास कुछ धुंधला सा है। 4 वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के शासनकाल में कुरुक्षेत्र का सांस्कृतिक और धार्मिक विकास एक हिंदू राज्य के रूप में हुआ।

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद यहाँ पुष्यभूति वंश(वर्धन वंश) का शासन चला 647 ख्रीष्टाब्द में सम्राट हर्षवर्धन के मृत्यु के बाद यहाँ गृहयुद्ध छिड़ गया। 733 ख्रीष्टाब्द में काश्मीरी सेनानी कुछ समय के लिए कुरुक्षेत्र पर अधिकार जमाया था। 736 ख्रीष्टाब्द में यहाँ तोमर वंश का शासन आरम्भ हुआ। 9 वी शताब्दी में यहाँ बंगाल का शासन था। 1014 से 1034 तक मामूद ग़जनी तथा अन्य मुस्लिम आक्रमण कारियों का लूटमार मचा रहा और 1206 – 1388 ख्रीष्टाब्द पर्यन्त यह दिल्ली सल्तनत के अधीन में रहा।

दिल्ली सल्तनत के कमजोर पड़ने के बाद सय्यद तथा लोदी वंश के शासन में रहा। 1526 में बाबर द्वारा इब्राहिम लोदी को पराजित करने के बाद कुरुक्षेत्र मुगल शासन के अधीन हो गया और सम्राट अकबर के शासनकाल में हिन्दू,  सिक्ख यथा इसलाम इन तीनों धर्म के आध्यात्मिक केंद्र के रूप में उभरा। 17-18 ख्रीष्टाब्द में कुरुक्षेत्र में मराठा साम्राज्य का शासन शुरू हुआ।

1805 ख्रीष्टाब्द में द्वितीय इंग- मराठा युद्ध में विजय पाकर अंग्रेजों ने कुरुक्षेत्र पर अधिकार जमाया। सन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से कुरुक्षेत्र एक आध्यात्मिक क्षेत्र के रूप में प्रतिष्ठा पाया तथा पुराने स्मारकों का संस्कार के साथ- साथ नव निर्माण भी आरंभ हुआ।

कुछ महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल तथा हिन्दू आध्यात्मिक क्षेत्र : ब्रह्म सरोवर : एशिया का सर्व वृहद कृत्रिम सरोवर माना जाने वाला यह सरोवर 3600 फुट लंबा,  1500 फुट चौड़ा तथा 45 फुट गहरा है!। प्रवाद के अनुसार,  भगवान ब्रह्मा ने कुरुक्षेत्र में यज्ञ करने के बाद इसी भूमि से पृथ्वी निर्माण कार्य प्रारंभ किया था,  इसलिए इस पवित्र सरोवर का नाम ब्रह्म सरोवर पड़ा।

प्रति दिन सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सरोवर की पूजा की जाती है,  सरोवर के मध्य में एक भव्य मंदिर तथा एक बहुत बड़ा काले पत्थर से बना हुआ श्रीकृष्ण- अर्जुन का रथ सरोवर प्रांगण की शोभा बढ़ाता है। सरोवर के घाटों का नाम महाभारत के मुख्य चरित्रों के अनुसार है। शहर का सर्वाधिक सुंदर स्थल है यह सरोवर,  जहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है।

प्रति वर्ष पवित्र सोमवती अमावस्या के दिन पूण्य स्नान के लिए यहाँ पूण्यार्थियों की भीड़ उमड़ पड़ती है; मान्यता है कि इस पूण्य तिथि में सरोवर में स्नान करने से पापमुक्त होकर जन्म- मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है। सूर्यग्रहण के दिन यहाँ लाखों पूण्यार्थी स्नान करते हैं,  सूर्य उपासना करते हैं; मान्यता है कि अश्वमेध यज्ञ सम्पादन के समान पूण्य मिलता है। सरोवर प्रांगण में हर साल सात दिन तक ‘भगवद् गीता’ का जन्मदिवस ”गीता जयंती’ मनाया जाता है। इसके उपरांत विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम जैसे नृत्य,  नाटक,  धर्मीय कार्यक्रम किया जाता है तथा शिल्पकारों का मेला लगता है।

सन्निहित सरोवर : सात पवित्र सरस्वती धाराओं का पवित्र संगम स्थल,  इस सरोवर के पवित्र जल में अमावस्या तथा सूर्यग्रहण के दिन स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पूण्य मिलता है।

ज्योतिसर : मान्यता है कि इस पूण्य स्थान में भगवान श्रीकृष्ण,  रिश्ते- नातों में भ्रमित मायावद्ध अर्जुन को मूल्यवान उपदेशों के द्वारा महाभारत के धर्मयुद्ध मेंअपना किरदार निभाने को प्रेरित किया था। 5000 साल पुराना बरगद का वृक्ष, श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के बीच हूए महान वार्ता लाप का साक्षी है जो आज ‘भगवद गीता’ नामक पवित्र ग्रंथ के रूप में जगप्रसिद्ध है। छोटी सी पुष्करणी संलग्न एक सुंदर मंदिर तथा प्राचीन बरगद का वृक्ष कुरुक्षेत्र ह का सबसे पवित्र स्थल है। पूण्य कामना में बरगद की शाखाओं में तथा मंदिर में यत्र- तत्र लाल रंग के मन्नत सुत्र देखने को मिलते हैं हिंदू धर्म में मन्नत के धागों के द्वारा इष्टदेव को अपना अभीष्ट जताने तथा मन्नत पूरी होने पर धागा उतारने के लिए दोबारा उस पूण्य भूमि के दर्शन का रिवाज़ है।

स्थानेश्वर महादेव मंदिर : कुरुक्षेत्र जिले के थानेश्वर शहर में स्थित यह प्राचीन मंदिर संभवतः पांडवों द्वारा निर्मित तथा भगवान शिव को समर्पित है। महाभारत युद्ध के पूर्व पांडव तथा भगवान श्रीकृष्ण यहाँ शिवजी की आराधना कर युद्ध विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था,  इसी मान्यता के आधार पर कुरुक्षेत्र की तीर्थ परिक्रमा इस मंदिर के दर्शन बिना पूरी नहीं होती। स्थाणु अर्थात शिव का स्थायी निवास,  बाद में यह नाम थानेश्वर में बदल गया तथा वर्धन वंश के राजा हर्षवर्धन की राजधानी भी बना। पुराण के अनुसार मंदिर संलग्न कुंड के जल बिंदु से बान राजा का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था।

गुरुद्वारा नवीं पात शाही : इतिहास अनुसार सिक्खों के नवमी गुरु तेगबहादुर ने भी थानेश्वर महादेव मंदिर का दर्शन किया था। उनकी याद में गुरुद्वारा नवीं पात शाही का निर्माण पास में ही किया गया था।

माता भद्रकाली मंदिर : भारत के 52 मान्यता प्राप्त शक्ति पीठों में से एक है माँ भद्रकाली मंदिर।पुराण के अनुसार जब दक्षकन्या सती दक्षराज के यज्ञ भूमि में पति निंदा के अपमान से क्षुब्ध होकर यज्ञाग्नि में प्राण त्याग दिए,  तब क्रुद्ध और विचलित शिव सती के मृत शरीर कांधे पर उठाकर पृथ्वी पर तांडव मचा रहे थे,  तब भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र द्वारा सती के अंग को 52 टुकड़ों में छिन्न किया था,  ताकि देवी सती के शरीर के खत्म होने के साथ ही शिवजी का क्रोध शांत हो जाए तथा सृष्टि की रक्षा हो। कहा जाता है देवी सती का दाहिना गुल्फ यहाँ गिरा था। शनिवार के दिन मंदिर दर्शन तथा पूजन शुभ होता है और मन्नत पूरी होने के बाद मिट्टी के छोटे घोड़े अर्पण करने का रिवाज़ है।

भीष्मकुंड तथा बाणगंगा : कुरुक्षेत्र शहर से 5 किमि की दूरी पर, नरकातारी ग्राम पंचायत में स्थित है भीष्म कुंड या बाणगंगा अपना पौराणिक अस्तित्व लिए। इस स्थान पर पितामह भीष्म शरशय्या में 58 दिन जीवित थे और उनकी

प्यास मिटाने के लिए अर्जुन, बाण द्वारा मिट्टी से गंगाजल की धारा प्रवाहित किए थे। उस स्थान पर जो कुंड बना,  वही भीष्मकुंड या बाणगंगा के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इन मंदिरों के अलावा हर शहर की तरह यहाँ विश्वकर् मंदिर,  कार्तिकेय मंदिर,  शिवमंदिर,  श्री वेंकटेश मंदिर कबीर आश्रम आदि हैं।

धरोहर म्यूजियम : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्थित इस म्यूजियम में हरियाणा राज्य की परंपरागत एवं सांस्कृतिक

निदर्शन हैं। कुरुक्षेत्र पैनोरमा तथा साईंस सेन्टर म्युराल (भित्ति चित्र) द्वारा महाभारत के युद्ध का प्रदर्शनी। मुस्लिम स्थापत्य का निदर्शन: शेख चिल्ली की समाधि आर्किओलजिकाल सर्वे आफ इंडिया द्वारा संरक्षित यह मुगल स्थापत्य का निदर्शन संभवतः सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के शिक्षक सुफी संत शेख चिल्ली की याद में बनाया गया था। दारा शिकोह के मूल शिक्षक लाहौर के हज़रत शेख मियां मीर साहब माने जाते हैं,  शेख चिल्ली संभवतः सह शिक्षक थे।

एक अन्य तथ्य के अनुसार यह स्मारक तथा मद्रासा संभवतः सुफी संत आबदूर रहीम या आब्द- उल- रज़ाक,  जो शेख चिल्ली नाम से प्रसिद्ध थे,  उनका स्मृति स्मारक है। दो समाधि,  एक मद्रासा एक सुंदर बगीचा तथा एक पुरातात्विक संग्रहालय,  जिनमें से दूसरी समाधि शेख चिल्ली के पत्नी की है। शेख चिल्ली की समाधि अष्टकोणीय,  पीला सैंड-स्टोन से निर्मित तथा एक गोलाकार मार्बल गुम्बद के मुकुट द्वारा सुसज्जित है। उनकी पत्नी की समाधि लाल सैंड-स्टोन से बनी है तथा मार्बल के गुम्बद पर फूलों की नक्काशी द्वारा सज्जित है,  जिसे कुछ हद तक ताजमहल के अनुरूप माना जाता है! दोनों समाधि ईरानी स्थापत्य कला के निदर्शन हैं।

संग्रहालय में प्रथम से सातवीं शताब्दी के बीच के राजवंशों के सील,  टेराकोटा स्थापत्य,  गहने,  तलवारें आदि प्रदर्शित है।

लाल सैंड-स्टोन से बने सुंदर मिनारों से सज्जित’ पाथर मस्जिद ‘तथा नाभा राजवंश द्वारा निर्मित प्रासादोपम अट्टालिका ‘नाभा हाउस’ भी दर्शनीय हैं। किसी भी राज्य या शहर अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाता है जब नवनिर्माण के विकास के साथ- साथ वह प्राचीन सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक धरोहर का भी पृष्ठभूमि होता है।

कुरुक्षेत्र एक ऐसा ही नगर है,  आइए हम अपने इतिहास का संरक्षण करें। वि.द्र.: सन 1994 में मैंने इन सारे द्रष्टव्यों का दर्शन किया था।

मणिमाला चटर्जी
लेखिका

नागपुर, महाराष्ट्र

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