पर्यावरण और मानवता के बिगड़ते रिश्ते – प्रियंका गहलौत

प्रियंका गहलौत (प्रिया कुमार) – लेखिका/समीक्षक – मुरादाबाद

पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के ‘परि’ उपसर्ग (चारों ओर) और ‘आवरण’ से मिलकर बना है जिसका अर्थ है ऐसी चीजों का समुच्चय जो किसी व्यक्ति या जीवधारी को चारों ओर से आवृत्त किये हुए हैं। पारिस्थितिकी और भूगोल में यह शब्द अंग्रेजी के environment के पर्याय के रूप में इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी शब्द environment स्वयं उपरोक्त पारिस्थितिकी के अर्थ में काफ़ी बाद में प्रयुक्त हुआ और यह शुरूआती दौर में आसपास की सामान्य दशाओं के लिये प्रयुक्त होता था। यह फ़्रांसीसी भाषा से उद्भूत है, जहाँ यह “state of being environed” (see environ + -ment) के अर्थ में प्रयुक्त होता था और इसका पहला ज्ञात प्रयोग कार्लाइल द्वारा जर्मन शब्द Umgebung के अर्थ को फ्रांसीसी में व्यक्त करने के लिए हुआ।

हमारी भारतीय संस्कृति अपने वैदिक साहित्य एवं प्रकृति के साथ उचित तालमेल के लिए विश्व भर में जाने जाती है। भारतीय संस्कृति में तीज त्योहारों, गौ सेवा, व्रत उपवास इत्यादि के माध्यम से पेड़ों, जीवों एवं इंसानों के बीच पारिस्थितिकी तंत्र को सुचारु रुप से बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। आज सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण में आए बदलावों से जूझ रहा है जिसके लिए प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से मानव जाति जिम्मेदार है।

ऐसा नहीं है कि बेमौसम बरसात, बर्फबारी,जंगलों में आग लगना, भूकंप और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएँ पहले नहीं आती थीं किन्तु वर्तमान परिस्थितियाँ इतनी बिगड़ चुकी हैं कि पर्यावरण की मार दिन प्रतिदिन घातक होती जा रही है। पर्यावरण में घातक बदलाव के लिए प्रदूषण एक प्रबल कारक है। बढ़ते कल कारखानों, सुख सुविधाओं के नाम पर इलेक्ट्रिकल मशीनों का इस्तेमाल, साफ- सफाई इत्यादि के लिए रासायनिक पदार्थो का प्रयोग एवं वनों का कटान ये सभी जल, थल और वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

मनुष्य ने अपनी स्वार्थी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रकृति के संसाधनों का अनुचित एवं जरुरत से अधिक दोहन कर के स्वयं को एक अँधेरे गर्त के मुहाने पर ला खड़ा किया है। यदि हम अब भी विकसित होने की होड़ में लगे रहे तो वह दिन दूर नहीं जब मानव सभ्यता इतिहास के ऐसे अलिखित पन्नो पर दर्ज़ हो कर गुम हो जाएगी जिसे ना कोई पढ़ नहीं पाएगा क्यों कि मानव जाति ही समाप्त हो जाए, हमें समय रहते जागरूक होना होगा और साथ ही स्वयं की जिम्मेदारी समझते हुए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण को दूर करने के उपायों पर गंभीरता पूर्वक कार्य करने होंगे।

हमारी भावी पीढ़ियों को हम स्वस्थ और साफ दुनिया उपहार में दें कर जाएँगे अथवा जहरीली हवा, प्रदूषित पानी भरा संसार, यह फैसला हमारा होगा। बिजली पानी की बचत पर ध्यान देते हुए अधिकाधिक वृक्षारोपण करना हम सभी का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए, ताकि भविष्य में मूलभूत आवश्यकताओं के लिए हम प्रकृति पर निर्भर रहें ना कि कृत्रिम साधनों के भ्रम में रह कर जीवन की दुर्गति कर बैठें।

5 जून 2024 “पर्यावरण दिवस” के अवसर पर ह्यूमन केयर फाउंडेशन ने जागरूकता अभियान चला कर वृक्षारोपण किया। एक -एक पेड़ बेहद कीमती एवं अनिवार्य है यह संदेश देते हुए ह्यूमन केयर फाउंडेशन ने लोगों को पर्यावरण संबंधित चेतावनी दी। आइए हम सभी मिलकर प्रण करें कि हर वर्ष पेड़ों की संख्या बढ़े ऐसा प्रयास करेंगे और अपनी प्यारी वसुंधरा (पृथ्वी) को सहेजेंगे ताकि भावी पीढ़ियाँ भी पृथ्वी को स्नेह और जिम्मेदारी से सहेज सकें। बस चलते चलते यह निम्न पंक्तियाँ याद रखें ताकि हमें पर्यावरण हेतु अपना प्रण स्मरण रहे।

“बारूद पर बैठ कर दुनिया ने तरक्की पाई है
गौर से देखो जरा, आगे कुआँ, पीछे खाई है। “
-अज्ञात

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