कविता – माँ का आंचल : डॉ सुनीता फड़नीस

मसालों की सुगंध से महकता,
चूल्हे से गर्म बर्तन को उठाता ।
रोते बच्चों के आँसू वह पोंछता ,
खेलने के बाद पसीना पोंछता।
हाथ पोंछने का नैपकिन बनता,
गोल लपेट कर आँख को सेंकता
नन्हों के लिए गोद में चादर बन जाता,
बच्चों के लिए आँचल की ओट बन जाता
शर्म आती तो मैं आँचल से मुँह ढँक लेती,
पल्लू पकड़ उसके पीछे-पीछे जाती
सर्द मौसम में मैं उसे आसपास लपेट लेती,
बारिश में माँ मुझे आँचल में छुपा लेती ।
मंदिर से माँ रोज़, प्रसाद आँचल में बाँध लाती,
कोई चीज गुमने पर पल्लू में गांठ लगाती ।
काम करते वक्त अक्सर पल्लू खोंस लेती ,
कभी-कभी थोड़े रुपए भी बाँध कर रखती ।
शाम तक मैला हो जाता आँचल
अब तो गुम गया मां का आँचल

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कविता – मां सर्व है : सीमा गुप्ता

मां माली है मां पालक है
मां हिम्मत है मां ताकत है ।
मां श्रद्धा है मां भक्ति है
मां ममता है मां शक्ति है।
मां नेह है मां अभिव्यक्ति है
मां श्रद्धा है मां प्रेम पंक्ति हैं ।
मां मिठास है मां महक है
मां रौनक है मां चहक है।
मैं विश्वास है मां आधार है
मां गुरु है मां संस्कार है।
मां रब है मां जन्नत है
मां वरदान है मां मन्नत है ।
मां कदम-कदम पर साथ हैं ।।
मां देह मात्र नहीं मां दिव्य है
मातृ तुम सचमुच सर्व है।
मातृत्व स्त्रैणभाव प्रकृति है
दुआ करती मां रात जगती है
हे! जननी शत् शत् नमन

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कविता – मेरी प्यारी मां : श्रवण सिंह राव

संपूर्ण संसार का मान है मां
हमारे घर -आंगन का सम्मान है मां
सुख दुःख का सार है मां
संतानों के दु:खों का नाम है मां
हमारे पालन- पोषण का नाम ही है मां
सेवा, क्षमा, ममता की मूरत है मां
हमारी तरक्की का आधार है मां
जीवन का आधार है मां
लक्ष्मी का स्वरूप है मां
हमारे रसोईघर की अन्नपूर्णा है मां
धैर्य ,सरलता, त्याग ,समर्पण ,दया ,का नाम ही है मां
आशा अभिलाषा का नाम है मां ईश्वर के समान ही है मां
स्वर्ग का भंडार है मां
सादगी शर्म और जरूरत पड़ने पर वीरांगना का नाम ही है मां
भक्ति-शक्ति का प्रमाण है मां
आत्मनिर्भर का नाम है मां
सहयोग एवं उत्तरदायित्व का सार है मां
आदर्श- संस्कार का नाम है मां
मातृ शिक्षा का भंडार है मां!!

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कविता – मेरे जीवन का उजाला है : अनिता राठौड़

मेरे जीवन का उजाला है तुझसे
धूप जैसी जिंदगी में छाया है माँ।
लड़ लेती हूँ हर मुश्किल से कि
हर पल तुझे संग पाया है माँ।
कठिन डगर पर भी सदा तूने
मुझमें आत्मविश्वास जगाया है माँ।
नहीं लगता डर किसी मुसीबत से
तूने हर जंग लड़ना सिखाया है माँ।
कमजोर पड़ जाती हूँ जो कभी
तुझको हमेशा पास पाया है माँ।
जीवन तो है धूप – छाँव बस पल का
यही सोच को मजबूत बनाया है मां।
अंधेरे से जब घबरा जाती हूं मैं
तेरे आँचल में खुद को पाया है मां।
मेरे जीवन का उजाला है तुझसे
धूप जैसी जिंदगी में छाया है माँ।

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कविता – माँ ममता की मूरत : डॉ कीर्ति

प्यारी मां
दुलारी मां
जीवन की संगिनी है
मेरी प्यारी मां
दिन भर वह काम करती
दिन भर वह संघर्ष करती
थकान होने पर भी
कभी चेहरे पर थकान महसूस न होने देती
प्यारी मां
दुलारी मां
ममता की मूरत
दया और त्याग से
है वह जग में दुलारी मां
मां बनकर इस जहांन को
जन्नत बना देती
पिता का आसरा बनकर
ना उनकी शान को कभी कम होने देती
जब भी विपदा आई उनके बच्चों पर
मां दुर्गा का रूप धारण कर
सब विपदा को हर लेती
प्यारी मां
दुलारी मां
जग मैं सबसे न्यारी
सबसे प्यारी है मेरी मां प्यारी मां
कभी दोस्त बन जाती
कभी हमसफर बनकर
हमारा हाथ थाम लेती
जब जब हमें हारा हुआ देखा
जब जब हमें थका हुआ देखा
अपने आंचल का सहारा देकर
हमें अच्छाई का पाठ पढ़ा कर
हमारी थकान है दूर कर देती
हमे जीवन में आगे बढ़ने की
और अग्रसर कर देती

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छत्तीसगढ़ की प्राचीन विरासत अदभुत वैभव को समेटे हुए सरगुजा – रविन्द्र गिन्नौरे

सरगुजा में एशिया की सबसे पहली रंगशाला है, सीता बेंगरा। सोलह सौ फीट ऊंचे पहाड़ की चट्टान को तराश कर बनी है यह रंगशाला। ऐसे मुक्ताकाशी रंगमंच (ओपन एयर थिएटर) की परंपरा वैदिक काल से शुरू हुई थी। त्रेतायुग में राम का वनवास काल और कालिदास की रामगिरी सहित ईसा पूर्व तीसरी सदी की समृद्ध सभ्यता, संस्कृति को समेटे हुए है रामगढ़ की पहाड़ियां। छत्तीसगढ़ का सरगुजा जो अपने आगोश में समेटे हुए है युगों की गाथा, ऐतिहासिकता और पूरी अवशेष संपदा। कहा गया है कि त्रेतायुग में राम ने वनवास काल में यहां विश्राम किया था। महाकवि कालिदास की रामगिरी भी यही है, यहां बैठकर कवि ने मेघदूत की रचना की थी। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी की सभ्यता के पुष्ट प्रमाण रामगढ़ की पहाड़ियों में विद्यमान हैं। यही है सीता बेंगरा, जहां होते थे नाटक और गीत-संगीत के आयोजन।

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साक्षात्कार : सुश्री नगीन तनवीर, लोक गायिका

सुविख्यात लोक गायिका सुश्री नगीन तनवीर जी वर्तमान समयमें अंसल अपार्टमेंट भोपाल में निवासरत हैं। नगीन जी अपनी माता श्रीमती मोनिका मिश्रा और पिता श्री हबीब तनवीर की इकलौती वारिस हैं। जिनका लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत और रंग मंच से गहरा बावस्ता है। किसी भी गुण को सीखने और जानने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है,खास कर शास्त्रीय संगीत में। गुरु शिष्य परंपरा के दौरान पूरे मनो योग सुर, लय, ताल की शिक्षा दी जाती है, नगीन जी कुछ इसी तरह की परंपरा से संबंध रखती हैं। नगीन जी स्कूल-कॉलेज की शिक्षा के साथ सुविख्यात रंग निर्देशक हबीब तनवीर की पारखी रचना शीलता की साक्षी बनीं। ऐसे ही कुछ अनुभवों को साझा किया है, सुविख्यात लोक गायिका सुश्री नगीन तनवीर जी ने शैलेंद्र कुशवाहा से बातचीत के दौरान:

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सूरजकुंड क्राफ्ट मेला : वसुधा गोयल

देश के कोने कोने से आएं हस्तशिल्पकार,  हर एक स्टेट का विशेष व्यंजन,  अपना घर,  चौपाल,  चारों तरफ हाथ से बनी वस्तुओं से सजावट,  रंगारंग कार्यक्रम,  लोक नृत्य,  रंगीन छटा मौज मस्ती। जी हाँ हम बात कर रहे हैं “अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेले” की। जिसका आयोजन हरियाणा के फरीदाबाद जिले में किया जाता है। इस मेले को सबसे बड़े “अंतर्राष्ट्रीय शिल्प मेले” का दर्जा भी प्राप्त है।इस मेले का आयोजन केंद्रीय पर्यटन,  कपड़ा,  संस्कृति,  विदेश मंत्रालयों और हरियाणा सरकार के सहयोग से ‘सूरजकुंड मेला प्राधिकरण’ में ‘हरियाणा पर्यटन’ संयुक्त रूप से करता है। 1 फरवरी से 15 फरवरी मेले के लिए निर्धारित तिथि है।

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कुरुक्षेत्र – धर्म का क्षेत्र : मणिमाला चटर्जी

हरियाणा राज्य का प्राचीन नाम था ब्रह्मेपदेश,  आर्यवर्त या ब्रह्मवर्त। भारत के उत्तर में स्थित इस राज्य के उत्तर सीमा में हिमाचल प्रदेश,  तथा दक्षिण- पश्चिम में है राजस्थान। हरियाणा राज्य के अन्तर्गत कुरुक्षेत्र एक प्राचीन और पवित्र क्षेत्र माना जाता है जहाँ ‘महाभारत’ का धर्मयुद्ध संघटित हुआ था तथा कृष्ण द्वारा अर्जुन को ‘भागवत् गीता’ की शिक्षा दी गई थी,  तथा मनु ऋषि द्वारा ‘मनुस्मृति’ की रचना की गई थी।

प्राचीन पुराण के अनुसार कौरव एवं पाण्डवों के पूर्वज राजा कुरु के नामानुसार इस क्षेत्र का नाम कुरुक्षेत्र हुआ। ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ के अनुसार कुरुक्षेत्र की स्थिति तुर्घना (सिरहिंद,  पंजाब) के दक्षिण में,  खाण्डव क्षेत्र के उत्तर में,  मरुस्थल के पूर्व तथा पारित के पश्चिम में है। ‘वामन पुराण’ के अनुसार राजा कुरु ने सरस्वती नदी के किनारे एक क्षेत्र का चयन किया था,  आध्यात्मिकता के आठ गुण : तापस,  सत्य,  क्षमा,  दया,  शुद्धि,  दान,  यज्ञ तथा ब्रह्मचर्य की आधारशिला की स्थापना के लिए।

सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के बीच स्थित यह भूमि एक पवित्र तीर्थ है क्योंकि भगवान विष्णु ने राजा कुरु के आदर्श से प्रभावित होकर दो वरदान दिया था। पहले वरदान के अनुसार,  राजा के नामांकित यह क्षेत्र एक पवित्र क्षेत्र बना रहेगा तथा इस क्षेत्र में मृत्यु होने से स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

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